वैज्ञानिकों ने एक नए दौर के कॉन्टैक्ट लेंस का जानवरों पर प्रयोग किया है जो छवि को आँखों के सामने हवा में प्रक्षेपित कर सकता है.
इस नई तकनीक की मदद से लोग आँखों के सामने तैरते ई-मेल और तस्वीरों को देख और पढ़ सकेंगे.
इस लेंस पर वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता काम कर रहे हैं और उनका कहना है कि यह तकनीक संभव है और सुरक्षित भी.इसके साथ-साथ इस नए लेंस से कमज़ोर आँखो वालों की दृष्टि भी मज़बूत होगी.
लेकिन इसके बावजूद कुछ मुश्किलें अब भी हैं. इनमें इस लेंस को ऊर्जा देने का बेहतर तरीक़ा ढूंढ़ना शामिल है.
फ़िलहाल इस लेंस का शुरुआती प्रारूप तभी काम कर सकता है जब वह वायरलेस बैटरी से कुछ सेंटीमीटर के फ़ासले पर ही हो.
खरगोश पर प्रयोग
इस लेंस का प्रयोग खरगोशों पर किया गया है. सुरक्षा के प्रयोग सफल रहे हैं और इन जानवरों की सेहत पर कोई ख़तरा नहीं देखा गया.
मुख्य शोधकर्ता प्रोफ़ेसर बाबाक प्राविज़ कहते हैं, "हमारा अगला लक्ष्य इस लेंस में कुछ अक्षर शामिल करने का है."
वह बताते हैं कि इस दिशा में एक बड़ी बाधा को पार कर लिया गया है. इस प्रक्रिया में मनुष्य की आँख को सतह पर बनी किसी छवि पर ध्यान केंद्रित करना होता है.
सामान्यत: हम तभी कोई तस्वीर देख सकते हैं जब वह आंखों से कुछ सेंटीमीटर की दूरी पर हो. लेकिन शोधकर्ताओं का यह लेंस फ़ोकस की दूरी को कम कर सकता है.
"हमारा अगला लक्ष्य इस लेंस में कुछ अक्षर शामिल करने का है."
प्रोफ़ेसर बाबाक प्राविज़, मुख्य शोधकर्ता
जब यह लेंस पूरी तरह तैयार हो जाएगी तो इसकी मदद से कई काम किए जा सकते हैं.
जैसे ड्राइवर अपने विंडस्क्रीन पर सफ़र की दिशाएं देख सकेंगे.
इससे वीडियो गेम को भी एक नए स्तर पर ले जाया जा सकेगा और कई चिकित्सा संबंधी यंत्रों में भी इसका प्रयोग हो सकेगा.
नाज़ुक
इस प्रयोग में कई नाज़ुक सामग्री इस्तेमाल की गई है. इसके सर्किट को बनाने में जिस धातु का प्रयोग किया गया वह सिर्फ़ कुछ नैनोमीटर मोटी है, यानी इंसानी बाल के हज़ारवें हिस्से के बराबर.
इस तकनीक पर काम करने में सिर्फ़ डॉक्टर प्राविज़ और उनकी टीम ही नहीं लगी हुई है. उनके अलावा एक स्विस कंपनी सेंसीमेड ने एक ख़ास किस्म का लेंस तैयार किया है जो कंप्यूटर की मदद से आँखों के अंदर दबाव को मापता है और ग्लॉकौमा की बीमारी में इस्तेमाल होता है.
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