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Tuesday, March 20, 2012

www.ravini.in. बॉलीवुड का दीवाना जर्मनी


जर्मनी में बॉलीवुड के गाने और फ़िल्में काफ़ी लोकप्रिय हैं

पिछले कई सालों से विदेश में बॉलीवुड की लोकप्रियता की चर्चा होती आ रही है. मध्य एशिया से लेकर उत्तर अफ्रीका, जापान से लेकर अमरीका.
इन तमाम देशों में हिंदी गानों की गूँज सुनाई देती है और हिंदी फिल्मों की धूम भी.
यह पता लगाने की बॉलीवुड की चर्चा और इसकी लोकप्रियता केवल प्रवासी भारतीयों के ही बीच है या फिर इन देशों के स्थानीय नागरिकों के बीच भी.
मुंबई के बान्द्रा इलाके में अगर आप कॉफी पीने जाएँ तो यह बहुत संभव है कि आपकी कुछ विदेशियों से दोस्ती हो जाए. पिछले कुछ सालों में बांद्रा के काफी घरों में मेरी दोस्ती कई विदेशी लोगों से हुई है.
इनमें जर्मन, ऑस्ट्रेलियाई, अमरीकी और अफ़्रीकी शामिल हैं. हमारे अधिकतर विदेशी दोस्त बॉलीवुड में अपनी किस्मत आजमाने आए हैं.
इन सभी लोगों का कहना है की उनके देशों में बॉलीवुड की लोकप्रियता बढती जा रही है. उनका कहना है की बॉलीवुड अब केवल विदेश में रहने वाले भारतीयों के बीच ही लोकप्रिय नहीं है बल्कि अंग्रेजों, यूरोपियन और अफ्रीकियों के बीच भी इसकी चर्चा है.
इनकी बातों को खुद देखने और महसूस करने के लिए मैंने विदेश यात्रा की योजना बनाई और अब चार दिनों से अपनी विदेश यात्रा के पहले पड़ाव पर जर्मनी में घूम रहा हूँ.

बेली डांस मेला

एक बड़े मंच पर सुनहरे और भूरे बालों वाली गोरी लड़कियां सर पर पल्लू रखे, कोहली औरतों के अंदाज़ में साड़ी और ब्लाउज पहने नाच रही हैं.
यह लडकियां मराठी फिल्म नत्रंज के गाने "माला जाओ दायना घरी..." यानी घर जाओ काफी रात हो चुकी है की ताल पर नाच रही हैं.


जर्मनी में बॉलीवुड के गाने और फ़िल्में काफ़ी लोकप्रिय हैं
जर्मनी में बॉलीवुड के गाने और फ़िल्में काफ़ी लोकप्रिय हैं 
यह सभी पंद्रह लड़कियां जर्मन हैं. लेकिन जिस खूबसूरती से यह अपने चेहरे पर भाव लाती हैं कमर लचकाती हैं इससे कोई नहीं कह सकता की यह लड़कियां कभी भारत गई ही नहीं हैं. हॉल के बाहर मौसम काफी ठण्डा है लेकिन अन्दर माहौल में गर्मी है. जर्मनी के दर्शकों को भारतीय नाच काफी पसंद आ रहा है.
यह नाच जर्मनी के शहर हनोवर में बेली डांस पर हो रहे एक मेले का हिस्सा है. मेला है बेली डांस का लेकिन सबसे अधिक वाह-वाही लूटी मराठी गाने पर नाचने वाली 15 जर्मन लड़कियों ने.
नाच ख़त्म होने पर इन लड़कियों की लीडर फर्दा बॉस को लोगों ने घेर लिया और ढेर सारी बधाईयाँ दीं.
यह है मिसाल जर्मनी में बॉलीवुड की लोकप्रियता की. ऐसे कई उदाहरण हैं. मैं एक 24 वर्षीय जर्मन लड़की से मिला जो यहाँ एक स्थानीय कॉलेज में पढ़ती है. वह बॉलीवुड की इतनी दीवानी है की वह 100 से अधिक फ़िल्में देख चुकी है.

बॉलीवुड पत्रिका

बॉलीवुड गपशप और बॉलीवुड की ख़बरों की मांग को देखते हुए आधे जर्मन और आधे भारतीय नसीम खान ने बॉलीवुड पर एक पत्रिका शुरू कर दी.
शाहरुख़ ख़ान
शाहरुख़ ख़ान की फ़िल्म डॉन-2 का जर्मनी में काफ़ी क्रेज़ रहा 
पत्रिका जर्मन भाषा में है लेकिन ख़बरें सारी बॉलीवुड की हैं. शाहरुख खान इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस पत्रिका को कई इंटरव्यू दे डाले.


जब इस पत्रिका ने इमरान खान को एक इंटरव्यू के लिए फोन किया तो वह इतने हैरान हुए कि उन्होंने वादा किया कि वह जर्मनी में बॉलीवुड के दर्शकों से मिलने ज़रूर आएंगे.
इस पत्रिका को शुरू हुए पांच साल हो चुके हैं. इसमें काम करने वाले पत्रकार जर्मन लड़के और लड़कियाँ हैं. इसके पाठकों की संख्या 30 हज़ार है और इसके पाठकों में जर्मनी के इलावा ऑस्ट्रिया और स्विट्ज़रलैंड के लोग भी शामिल हैं.

लोकप्रिय शाहरुख़

जर्मनी भर में बॉलीवुड लोकप्रिय है. और यहाँ बॉलीवुड के सबसे जाने माने कलाकार हैं शाहरुख खान. भारत में इस बात पर मतभेद हो सकता है कि आज कल बॉलीवुड का नंबर वन हीरो कौन है. लेकिन जर्मनी में नहीं.
यहाँ बॉलीवुड का मतलब है शाहरुख खान. एक सुन्दर जवान लड़की ने कहा उसकी माँ शाहरुख खान की दीवानी है.
और आप? मैंने पूछा. "मैं भी'. जर्मनी में शाहरुख खान सबकी ज़बान पर हैं. यहाँ इन दिनों उनकी डॉन 2 फिल्म की खूब चर्चा है.
शाहरुख खान को यहाँ अपनी लोकप्रियता के बारे में मालूम है इसलिए वह यहाँ तीन बार आ चुके हैं. यहाँ के मीडिया से बातें करते हैं और जर्मनी में अपनी लोकप्रियता को बनाने में खुद उनका हाथ है. बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में भी वह आ चुके हैं.

हनोवर में बॉलीवुड

हनोवर जर्मनी का एक पुराना शहर है.
पांच लाख की आबादी वाला यह शहर उद्योग में काफी आगे है. दुनिया की कार बनाने वाली मशहूर कंपनी फ़ोक्स्वागन की फैक्टरी और इसका मुख्य कार्यालय इसी शहर में है.
लेकिन साथ ही यह शहर जर्मनी के सांस्कृतिक केद्रों में से एक है. इसके 60 से अधिक सिनेमा घर, बड़े-बड़े ओपेरा घर और कला केंद्र इस बात का गवाह हैं की इस शहर के लोग कला और संस्कृति में काफी रुचि रखते हैं
लेकिन मुंबई से हज़ारों मील दूर इस शहर के लोग बॉलीवुड में भी ज़बरदस्त दिलचस्पी रखते हैं.
इसका अंदाजा यहाँ पहुँचने से पहले बिल्कुल नहीं था. यहाँ की डीवीडी की दुकानों में बॉलीवुड का एक अलग सेक्शन है और इसकी बिक्री खूब होती है.
यहाँ के सिनेमा घरों में बॉलीवुड की फ़िल्में बराबर दिखाई जाती हैं और यहाँ कुछ बॉलीवुड डांस ग्रुप भी हैं जिनमें नाचने वाली लड़कियां जर्मन हैं.


Monday, March 19, 2012

Proud to be a GOOD INDIAN ,www.ravini.in




PLEASE READ TILL END 
Not liking the food you have daily???? 
      ..........................How about some pizza? 



 


No??? Ok........ Pasta? 

No?? .. How about Taco? 

 
Not in taco mood today? ... ok..

Trying this Mexican Food?  

No again? No probs.. we have more choice..  

Hmmmmmmm.. chinise???????  

 

Burgersssssss???????? 

 
Ok.. lets try Indian..  
    South Indian Food? 
Naaaaa??? North Indian?  

 
Junk food mood?  

 


The choice we have is endless.......   Tiffin ?  

 
Non-Veg?  

 
Large Quantity?  

 
Or just some bites of chicken? 
You can have any of these... or try out little from all...
But.. They have No choice..  
   
They just need some food to survive...   

 

Think of them next time you throw the cafeteria food saying, its not tasty!!  

 

Think of them next time you say ... Roti here is too hard to eat..  

 

Please  
DO NOT WASTE  food 
If you have a function/party at your home in India and food gets wasted, don't hesitate to  
call 1098  (only in India) - Its not a Joke - child helpline. They will come and collect the food.
Please circulate this message which can help feed many children.
PLEASE, DON 'T BREAK THIS CHAIN,
WE CAN FORWARD JOKES AND SPAM MAILS TO OUR FRIENDS & NETWORKS PLEASE FOR ONCE FORWARD THIS AND LETS TRY TO HELP INDIA BE A BETTER PLACE TO LIVE IN - 
'Helping hands are better than Praying Lips' - give us your helping hand.

Saturday, March 17, 2012

Ravini.in आज के ज़माने के सिकंदर हैं तेंदुलकर



सचिन के लक्ष्यों को लेकर सचिन से अधिक उनके फैन पगलाए हुए थे.
हर लक्ष्य के बाद और नए लक्ष्य तय कर दिए जाते थे

बीसवीं सदी की शुरुआत यानी 1900 के आसपास ये माना जाता था कि भौतिक शास्त्र अपने चरम पर पहुंच चुका है और जो खोजा जा सकता था वो खोजा जा चुका है.
अब जो खोजा जाएगा वो बस छोटी मोटी बात होगी यानि विज्ञान पूर्ण हो गया है, और लगभग  इसी समय अल्बर्ट आइंस्टीन ने क्वांटम फीजिक्स और सापेक्षता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसने पूरे भौतिक शास्त्र को उलट पुलट कर रख दिया.



                      खेल के रिकार्ड भी कुछ ऐसे ही होते हैं. 
विशेषज्ञ तय करते हैं कि अब इससे बेहतर नहीं हो सकता और फिर ऐसा हो जाता है.
जब बॉब बीमन ने मेक्सिको ओलंपिक में 8.90 मीटर की लंबी कूद लगाई थी तो कई लोगों को लगा था कि ये रिकार्ड अब नहीं टूटेगा. यह 25 साल भी नहीं चला.

क्रिकेट की बात

क्रिकेट के रिकार्ड की बात करें तो दो रिकार्ड हमेशा याद किए जाते हैं.
सर डॉन ब्रैडमैन का करियर का औसत 99.94 और जिम लेकर के एक ही मैच में 90 रन देकर लिए गए 19 विकेट
हाल ही में एक और रिकार्ड बना मुरलीधरन के टेस्ट क्रिकेट में 800 विकेट.
अब इसी श्रृंखला में एक और नाम जुड़ा है- अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सचिन का सौंवा शतक.
रिकार्ड कितना बड़ा है इसका अंदाज़ा लगाने के लिए देखिए, दूसरे नंबर पर मौजूद रिकी पोंटिंग को जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कुल शतक लगाए हैं 71.
टेस्ट क्रिकेट में सचिन के 52 शतकों के बाद जैक्स कैलिस का नंबर है जिन्होंने 42 टेस्ट शतक लगाए हैं.
वनडे में सचिन के 49 शतकों के बाद दूसरे नंबर पर रिकी पोंटिंग हैं जिन्होंने मात्र 30 शतक लगाए हैं.
क्या इसकी कोई तुलना हो सकती है?

फैन पगलाए

तेंदुलकर ने जब 16 साल की उम्र में अपना करियर शुरु किया था तो 35 टेस्ट शतक बनाना संतोषजनक माना जाता था और वनडे में 25 शतक बन जाएं तो 60 अंतरराष्ट्रीय शतक अच्छा लगता था.
ऐसा लगता है कि सचिन के लक्ष्यों को लेकर सचिन से अधिक उनके फैन पगलाए हुए थे. हर लक्ष्य के बाद और नए लक्ष्य तय कर दिए जाते थे.
अब जबकि टेस्ट मैचों के भविष्य पर ही बहस चल रही है जहां टेस्ट मैचों की संख्या कम किए जाने पर विचार हो रहा है तो फिर यह बात बेकार लगती है कि रिकार्ड टूटने के लिए ही बनते हैं.
किसी मर्डर मिस्ट्री की तरह बल्लेबाज़ों का भी अपना उद्देश्य होता है, मौके होते हैं और लक्ष्य होते हैं.
फिर सवाल उम्र का भी था. इच्छा ज़रुर थी लेकिन 40 की उम्र में शरीर साथ नहीं देता.
  
सचिन ने एक दिवसीय क्रिकेट में 49 और
टेस्ट क्रिकेट में 51 शतक लगाए हैं

'सौम्य' तेंदुलकर


यह देखना आसान है कि 99.94 के टेस्ट औसत को पार कर पाना क्यों मुश्किल है. ब्रैडमैन  के बाद दूसरे नंबर पर हर्बर्ट सटक्लिफ हैं जिनका औसत 60.73 है. ये उन खिलाड़ियों के औसत की बात हो रही है जिन्होंने 50 से अधिक टेस्ट खेले हैं.
लेकर की बात करें तो ये भी मुश्किल है. एक ही मैच में दो बार दस दस विकेट लेना असंभव ही लगता है. लेकर के बाद दूसरे नंबर पर हैं सिड बार्नेस जिन्होंने 159 रन देकर 17 विकेट लिए हैं.
तेंदुलकर सौम्य है लेकिन वो आज के ज़माने के सिकंदर हैं जिनके लिए कोई दुनिया जीतना बाकी नहीं रह गया है.
लेकिन किसी के लिए भी 100 अंतरराष्ट्रीय शतक बनाना मुश्किल है जिसके लिए करियर जल्दी शुरु करना होगा और कम से कम दो दशक खेलना होगा जिसमें हर साल कम से कम पांच शतक लगाने होंगे. ये असंभव नहीं तो मुश्किल ज़रुर दिखता है.
भारतीय क्रिकेट जोश पर टिका है जहां भावनाएं बहुत जल्दी आहत हो जाती हैं. खिलाड़ियों को भगवान माना जाता है. रोमांस यथार्थ पर भारी है. भावनाएं तर्क और बहस को पार कर जाती हैं.
यही कारण है कि हार में तेंदुलकर के शतक का जश्न मनाया जाता है...जीत में 40 रन बनाएं सचिन तो जश्न का मज़ा कम होता है.
शायद तभी लोगों को सचिन के 99 अंतरराष्ट्रीय शतकों में से सिर्फ 53 शतकों से भारत को जीत मिली है.
लेकिन आज... बात कुछ और थी.
हेमिंग्वे के शब्दों में कहें तो आपकी किस्मत अच्छी है अगर आपने तेंदुलकर के करियर को देखा है क्योंकि जिंदगी में आप कहीं भी जाएंगे तेंदुलकर आपके साथ रहेंगे.
...और ये एहसास तेंदुलकर की सबसे बड़ी उपलब्धि है.